Read...किस्सा रफ़ काॅपी का...!!

किस्सा रफ कापी का.....!!
हर सब्जेक्ट की काॅपी अलग अलग बनती थी,परंतु एक काॅपी ऐसी थी जो हर सब्जेक्ट को सम्भालती थी। उसे हम रफ़ काॅपी कहते थे।
यूं तो रफ़ काॅपी  का मतलब खुरदुरा होता है। परंतु वो रफ़ काॅपी हमारे लिए बहुत कोमल होती थी।
कोमल इस सन्दर्भ में कि उसके पहले पेज पर हमें कोई इंडेक्स नहीं बनाना होता था, न ही शपथ लेनी होती थी कि, इस काॅपी का एक भी पेज नहीं फाडेगे या इसे साफ रखेंगे।
उस काॅपी पर हमारे किसी न किसी पसंदीदा व्यक्तित्व का चित्र होता था।
उस काॅपी के पहले पन्ने पर सिर्फ हमारा नाम होता था और आखिरी पन्नों पर अजीब सी कला कृतियां, राजा मंत्री चोर सिपाही या फिर पर्ची वाले क्रिकेट का स्कोर कार्ड। उस रफ़ काॅपी में बहुत सी यादें होती थी।
जैसे अनकहा प्रेम,
अनजाना सा गुस्सा,
कुछ उदासी,
कुछ दर्द,
हमारी रफ काॅपी में ये सब कोड वर्ड में लिखा होता था जिसे कोई ISI या CIA डिकोड नहीं कर सकती थी।
उस पर अंकित कुछ शब्द, कुछ नाम कुछ चीजें ऐसी थीं, जिन्हें मिटाया जाना हमारे लिए असंभव था।
हमारे बैग में कुछ हो या न हो वो रफ़ काॅपी जरूर होती थी। आप हमारे बैग से कुछ भी ले सकते थे पर वो रफ़ काॅपी नहीं।
हर पेज पर हमने बहुत कुछ ऐसा लिखा होता था जिसे हम किसी को नहीं पढ़ा सकते थे।
कभी कभी ये भी होता था कि उन पन्नों से हमने वो चीज फाड़ कर दांतों तले चबा कर थूक दिया था क्योंकि हमें वो चीज पसंद न आई होगी।
समय इतना बीत गया कि, अब काॅपी ही नहीं रखते हैं। रफ़ काॅपी जीवन से बहुत दूर चली गई है,
हालांकि अब बैग भी नहीं रखते हैं कि रफ़ काॅपी रखी जाए। वो खुरदुरे पन्नों वाली रफ़ काॅपी अब मिलती ही नहीं।
हिसाब भी नहीं हुआ है बहुत दिनों से, न ही प्रेम का न ही गुस्से का, यादों की गुणा भाग का समय नहीं बचता।
अगर कभी वो रफ़ काॅपी मिलेगी उसे लेकर बैठेंगे, फिर से पुरानी चीजों को खगांलेगें, हिसाब करेंगे और आखिरी के पन्नों पर राजा, मंत्री, चोर, सिपाही खेलेंगे।
वो 'नटराज' की पेन्सिल, वो 'चेलपार्क' की स्याही, वो महंगा 'पायलेट' का पेन और जैल पेन की लिखाई।
वो सारी ड्राइंग, वो पहाड़, वो नदियां, वो झरने, वो फूल, लिखते लिखते ना जाने कब ख़त्म हुआ स्कूल।
अब तो बस साइन करने के लिए उठती है कलम, पर आज न जाने क्यों वो नोटबुक का वो आखिरी पन्ना याद आ गया जैसे उस काट - पीट में छिपा कोई राज ही टकरा गया।
जीवन में शायद कहीं कुछ कम सा हो गया। पलके भीगी सी है, कुछ नम सा हो गया। आज फिर वक्त शायद कुछ थम सा गया।
क्या आपको याद है आपकी वो रफ़ काॅपी???
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