उंगलियों उठ रही हैं क्योंकि...3 साल में 700 यात्रियों का काल बनी प्रभु की #Rail

नई दिल्ली। मुजफ्फरनगर में हुए रेल हादसे को एक सप्ताह भी पूरा नहीं हुआ है और औरैया में आजमगढ़ से दिल्ली आने वाली कैफियात एक्सप्रेस बड़े हादसे का शिकार हो गई। डंपर से टकराकर ट्रेन की सात बोगियां डिरेल हो गई इस हादसे में कई यात्री घायल हुए हैं। हादसे के बाद रेल मंत्री सुरेश प्रभु पर उंगलियों उठ रही हैं क्योंकि रेल मंत्री सुरेश प्रभु के 3 साल के कार्यकाल में करीब 700 लोग रेल हादसों में अपनी जान गवां चुके हैं। ये आंकड़ा साल 2014-15 से अब तक का है। इस दौरान 346 छोटे बड़े रेल हादसे हुए हैं।  रेल सुरक्षा पर बड़े बड़े दावों के बाद भी मुसाफिरों की जान भारतीय रेल में सुरक्षित नहीं है।  इससे पहले लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहते साल 2004-05 से 2006-07 तक 663 रेल हादसे हुए थे जिनमें 759 लोगों की मौत हुई थी। प्रभु के कार्यकाल में भारतीय रेल में डिरेलमेंट (ट्रेन के पटरी से उतरने) के मामलों में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
साल दर साल बढ़ा खतरा
2012-13 -  69 हादसों में 49 डिरेलमेंट के मामले थे। साल 2013-14 में 71 हादसों में 53, 2014-15 में कुल 85 रेल हादसों में 63, 2015-16 में 78 हादसों में 65 और साल 2016-17 में करीब 100 रेल हादसे हुए जिनमें से 80 मामले डिरेलमेंट के थे।


नहीं काम आई अफसरों को दी चेतावनी

इस हादसे के बाद 29 दिसंबर को ही रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने रेल बोर्ड और सभी जोन के महाप्रबंधकों के साथ मीटिंग में साफ तौर पर कहा था कि मैं यहां छोटे से संदेश के साथ आया हूं अगर आपसे हालात नहीं संभल रहे हैं तो हम दूसरे अधिकारियों की तलाश कर लेंगे लेकिन मंत्री के कड़े संदेश के बाद भी रेलवे में हालात नहीं बदले और उसके बाद भी पटरियों के टूटने के दर्जनों मामले सामने आए।

9 महीने बाद भी नहीं सौंपी रिपोर्ट, हर बार लीपापोती

रेल के हर बड़े हादसे (जिसमें मुसाफिरों की जान गई हो) की जांच की एक प्रक्रिया निर्धारित है। यह जांच कमिश्नर रेलवे सेफ्टी करते हैं। इन्हें हर हादसे की जांच की एक प्रारंभिक रिपोर्ट एक महीने के अंदर रेलवे को सौंपना होता है लेकिन 9 महीने गुजर जाने के बाद भी न तो पुखरायां हादसे और न ही 7 महीने गुजर जाने के बाद कुनेरु हादसे की कोई रिपोर्ट आई है न ही इसकी कोई जानकारी साझा की गई है। भले ही ये हादसे किसी षड्यंत्र की वजह से हुए हों लेकिन इसपर आज तक कोई रिपोर्ट साझा नहीं की गई है।  यानि यहां मुद्दों पर पर्दा डालकर बचने की कोशिश ज्यादा होती है। अब तो रेल हादसे को लेकर नया चलन सामने आया है और हर हादसे में आतंकी एंगल तलाशा जाने लगा है। सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना भी जमकर हो रही है और बुलेट ट्रेन चलाने के वादे पर सवाल उठ रहे हैं। 
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