■ सुखराम बामने, अधिवक्ता
गंगा जमूनी संस्कृति की पहचान रहे भारत वर्ष में धार्मिक कट्टरता का स्थान कभी नहीं रहा। कुछेक मौकों को छोड़ दिया जाए तो देश में चाहे हिन्दू या मुस्लिम। या फिर कोई भी धर्म पंथ,भाषा का अनुयायी हो। सामाजिक सद्भाव के साथ रहते आए हैं। लेकिन, हाल के कुछ वर्षों में में ‘सत्ता प्रायोजित’ उन्माद जिस तरह से फैल रहा है। वह चिंताजनक है। यह देश के लिए खतरनाक भी है। यह भयावह इसलिए है कि क्योंकि इस सभ्यता के ‘रक्षक’ मारे जा रहे हैं। वे चाहे पत्रकार हो। समाज सेवक हो। या फिर न्यायालय में काम करने करने वाले अधिवक्ता।
मंगलवार शाम को एक बार फिर देश को स्तब्ध करने वाली घटना घटी। ठीक उसी तरह जैसे जाने-माने तर्कवादी विचारक डॉक्टर एमएम कलबुर्गी को मार दिया जाता है। वैसे ही जैसे दादरी का अखलाख मारा जाता है। एक बार फिर तर्कवादी पत्रकार गौरी लंकेश मार दी जाती है। वजह जो भी हो। लेकिन, उनकी पहचान ही कुतर्कों के खिलाफ अभियान छेड़ देने की रही है। लंकेश माओवादियों को मुख्यधारा में लाने में संघर्षरत थीं। उन्होंने कर्नाटक के दलितों को अधिकार दिलाने के लिए भी अभियान चलाया। इसके अलावा, सबसे खास यह था कि वह उस दौर में दक्षिणपंथ के खिलाफ मुखर होकर खड़ी थी जब बड़े मीडिया हाउस सत्ता के सामने नतमस्तक होकर चरणवंदना में लगे हुए है। वह संघ-भाजपा के खुले रूप से खिलाफ भी बोल रही थीं। उन्होंने अफवाहों के लेकर भी खुलकर लिखा है। शायद यही कट्टरवादियों को पसंद न आया हो।
हाल के कुछ वर्षों में देश में धार्मिक उन्माद और कट्टरवाद के खिलाफ बोलना और लिखना गुनाह हो गया है। ये लोग कौन है। पहचान करना मुश्किल नहीं। इन्हें किसका संरक्षण मिल रहा है। यह भी किसी से छिपा नहीं है। यह वही लोग है जो संविधान को खोखला करने पर आमदा है। इन्हें अभिव्यक्ति की आजादी देशद्रोह लगता है। ये उसी जमात के आक्रांता है जिन्होंने गांधी को भी मारा। रोहित वेमुला को भी मारा। लेकिन, कब तक मारेंगे। ये हत्यारे शायद भूल गए होंगे आप किसी विचारक को मार सकते हो। उनके विचार नहीं।
आज हालात यह हो गए है कि मीडिया हो या सोशल मीडिया। इन कट्टरवादी ताकतों के खिलाफ लिखना मतलब अपनी जान जोखिम में डालना है। यह हत्यारे अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को क्यों मार रहे है? ऐसा क्या है , जो आम जनता से छुपाना चाहते है। कुछ तो गड़बड़ हो ही रहा है, जिसे छुपाने के लिए हत्याएं की जा रहा है। लोगों को डराया जा रहा है। लेकिन, आखिर तब तक। क्या किसी भी मुद्दे पर लोकतांत्रिक सरकार से सवाल करना गुनाह है? हम तो सवाल करेंगे ही। क्यों। क्योंकि यह अधिकार हमें देश का संविधान देता है।
बहरहाल, देश में जो हत्याएं हुई उससे यह तो साबित हो ही गया कि ऐसी कट्टरपंथी जमात में भय व्याप्त है। उन्हें कोई रास्ता मिल नहीं रहा है। यह चाहते है कि इनके पाखंड और कारनामे उजागर न हो जाए। ये हत्यारे कुंठित और डरपोक विचारों से पोषित है। इन्हें सिर्फ तो तारीफें पसंद है। इनके खिलाफ उठने वाले आवाजें कुचल दीर जाती है। लेकिन, ऐसी ताकतें भूल गई होगी कि जिस तरह से गांधी उस हत्यारे गोडसे की गोली से नहीं मरे थे, वे तो हमारे विचारों में आज भी जिंदा है। हमारी आदतों में उनका व्यक्तित्व जिंदा है। इसी प्रकार गौरी हो या कलबुर्गी। या फिर रोहित वेमूला का बलिदान। हमेशा जिन्दा रहेगा। हमारी यादों में। हमारे विचारों में। सत–सत नमन और विनम्र।श्रद्धांजलि।
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Yeh toh theek hai Lekin prayojit aatank kahna thoda jyada hai.
ReplyDeleteयह सरकार द्वारा प्रायोजित आतंक है। इसे मोदी–शाह की जोड़ी चला रही है।अपने इस जोड़ी ने आडवाणी जोशी और अटल जी जैसे धुरंधरों को नहीं छोड़ा तो। फिर दूसरी विचारधारा के लोगों की क्या औकात है। और सत्ता का नशा किसी की भी खिलाफ सुनने की ताकत खत्म कर देंता है। वैसे भाजपा को तो प्रचंड बहुमत मिला है।
ReplyDeleteno no.. its only a propeganda by congress supporter.
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