ट्रिपल तलाक के लिए मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड भोपाल ने बनाएगा रणनीति

नई दिल्ली। आखिरकार 1400 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने बहुमत के साथ ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया है। जानकारी के मुताबिक पांच में से दो जज तीन तलाक बनाए रखने के पक्ष में थे। पिछले चुनाव के दौरान बीजेपी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था।देश की सबसे बड़ी अदालत में लड़ी गई इस कानूनी लड़ाई को अपने अंजाम तक पहुंचाने में कई महिलाओं का संघर्ष शामिल रहा है। इनमें सबसे अहम नाम है उत्तराखंड की सायरा बानो का जो इस मामले को सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थीं। उनके अलावा आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां और अतिया साबरी भी उन महिलाओं में है जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद की।


आखिर क्या है तीन तलाक
यह मुसलमानों से जुड़ी एक विवादित प्रथा है। तीन तलाक शरिया का नियम है। जिसमें पुरुष को तीन बार महज तलाक कहने भर से शादी खत्म होने का अधिकार मिलता है।

इन पांच जजों की बेंच ने की सुनवाई

विवाद बढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की एक बेंच बनाई जो मामले की सुनवाई कर रही है। पांच में से तीन जज इसे खत्म करने के पक्ष में बताए जा रहे हैं। बेंच में शामिल सभी जज अलग-अलग धर्मों से हैं। इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी हैं। चीफ जस्टिस खेहर बेंच को लीड कर रहे हैं। वो सिख हैं। जबकि जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई, आरएफ नरीमन पारसी, यूयू ललित हिंदू, अब्दुल नजीर मुस्लिम हैं।

जस्टिस खेहर: 28 अगस्त 1952 को चंड़ीगढ़ में जन्मे जस्टिस खेहर ने माना कि यह असंवैधानिक नहीं है। जस्टिस खेहर साइंस ग्रैजुएट हैं और उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी और एलएलएम की पढ़ाई की। 1979 में उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। वो 1999 में पंजाब हाईकोर्ट में जज बनाए गए। 2009 में उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जबकि 2011 में सुप्रीम में जज बने। उन्हें इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। खेहर इसी महीने रिटायर हो जाएंगे।

जस्टिस अब्दुल नजीर:  जस्टिस अब्दुल नजीर ने माना कि तीन तलाक असंवैधानिक नहीं है। 1958 को कर्नाटक में जन्मे जस्टिस नजीर ने 1983 में वकालत शुरू की थी। वो कर्नाटक हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते थे। 2003 में उन्हें यहीं अतिरिक्त जज बनाया गया था। फिर यहीं 2004 में स्थायी जज नियुक्त हुए। वो इसी साल सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे।

जस्टिस कुरियन : 30 नवंबर 1953 में केरल में जन्मे जस्टिस कुरियन तीन तलाक खत्म करने के पक्ष में हैं। केरल लॉ एकेडमी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई करने वाले जस्टिस कुरियन ने 1979 के दौरान केरल हाई कोर्ट से वकालत शुरू की। वो 1987 में सरकारी वकील बने फिर 1994 से 1996 तक एडिशनल जनरल एकवोकेट रहे। 2000 में वो केरल हाई कोर्ट में जज बने। जस्टिस कुरियन दो बार केरल हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायधीश भी रहे।जबकि 2010 से 2013 तक हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी रहे। 2013 में ही वो सुप्रीम कोर्ट में जज बने। वो अगले साल रिटायर होंगे।

जस्टिस रोहिंटन : जस्टिस आरएफ नरीमन तीन तलाक जारी रखने के पक्ष में हैं। 1956 को मुंबई में जन्मे जस्टिस नरीमन ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी आॅफ लॉ में कानून की डिग्री ली। उन्होंने हार्वर्ड लॉ आॅफ स्कूल से एलएलएम किया। जस्टिस नरीमन 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज बनें।

यूयू ललित : जस्टिस उदय उमेश ललित तीन तलाक को खत्म करने के पक्ष में हैं। 1957 में जन्मे जस्टिस ललित ने 1983 से वकालत की शुरूआत की। उन्होंने 1985 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की। बाद में प्रैक्टिस के लिए दिल्ली आ गए। 2004 में वो सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील बने। 2014 में जस्टिस ललित सुप्रीम कोर्ट में जज बने।

किसने क्या कहा...

मुस्लिम महिलाओं के लिए नए युग की शुरुआत

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने भी कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। शाह ने कहा कि कोर्ट का फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए नए युग की शुरुआत है। शाह ने कहा कि यह फैसला न्यू इंडिया की ओर बढ़ता हुआ एक कदम है। शाह ने अपने बयान में कहा कि यह फैसला किसी की हार या जीत नहीं है, बल्कि समानता के अधिकार की नई शुरुआत है। शाह ने मोदी सरकार द्वारा कोर्ट में रखे गए अपने पक्ष की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि कई मुस्लिम देशों में भी तीन तलाक का अस्तित्व नहीं है।

मेनका गांधी ने भी किया स्वागत

केंद्रीय महिला विकास एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अच्छा कदम है, बहुत सालों से औरतें पीड़ित थीं। उन्होंने कहा कि कोई भी नहीं चाहेगा कि उनके आधे लोग पीड़ित हो। कोई भी धर्म और सामाजिक सिस्टम नहीं चाहेगा कि उनकी आधे लोग पीड़ित हो। मेनका गांधी ने कहा कि सरकार इस पर जरूर कानून बनाएगी, जल्द कानून में बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। संविधान में सभी के लिए समान अधिकार हैं। केंद्रीय मंत्री बोलीं कि यह छोटा कदम है लेकिन एक अच्छा कदम, हम लोगों को बहुत दूर जाना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने महिलाओं के हित के लिए बड़े कदम उठाएं, उनका हित चाहा है महिलाओं का। कुछ लोगों के विरोध पर मेनका गांधी का कहना है कि परंपराए जो है पत्थर की लकीर तो नहीं है। जैसे-जैसे जमाना बदलता है, वैसे-वैसे सब को बदलना पड़ेगा।


यह पांच महिलाओं ने बदल दी कौम की तकदीर

सायरा बानो: उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली सायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। साथ ही, उनकी याचिका में मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा को भी गलत बताते हुए उसे खत्म करनी की मांग की गई थी। अर्जी में सायरा ने कहा था कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सायरा बानो ने एनबीटी से बातचीत में बताया था, 'मैंने कुमायूं यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए किया है। 2001 में मेरी शादी हुई। 10 अक्टूबर 2015 को पति ने मुझे तलाक दे दिया। तलाक के बाद मैं अपने पैरंट्स के साथ रह रही हूं। मेरा एक बेटा और एक बेटी है। दोनों स्कूल जाते हैं। उनका खर्चा मैं कैसे उठाऊं। मुझे लगता है कि मेरे मूल अधिकार का हनन हुआ है। अपने पैरंट्स की मदद से मैं दिल्ली आई और एडवोकेट बालाजी श्रीनिवासन से मिलकर कोर्ट में याचिका दायर की। मुझे किसी भी दूसरी महिला की तरह अपना हक चाहिए।'

आफरीन रहमान: जयपुर की 25 वर्षीय आफरीन रहमान ने भी तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने बताया था कि इंदौर में रहने वाले उनके पति ने स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक दिया है, जो सही नहीं है। आफरीन ने कोर्ट से न्याय की मांग की थी। आफरीन का आरोप था कि उनके पति समेत ससुराल पक्ष के दूसरे लोगों ने मिलकर दहेज की मांग को लेकर उनके साथ काफी मारपीट की और फिर उन्हें घर से निकाल दिया।

अतिया साबरी: यूपी के सहारनपुर की आतिया साबरी के पति ने कागज पर तीन तलाक लिखकर आतिया से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। उनकी शादी 2012 में हुई थी। उनकी दो बेटियां भी हैं। अतिया ने आरोप लगाया था कि लगातार दो बेटियां होने से नाराज उनके शौहर और ससुर उन्हें घर से निकालना चाहते थे। उन्हें दहेज के लिए भी परेशान किया जाता था।

गुलशन परवीन: यूपी के ही रामपुर में रहने वाली गुलशन परवीन को उनके पति ने 10 रुपये के स्टांप पेपर पर तलाकनामा भेज दिया था। गुलशन की 2013 में शादी हुई थी और उनका दो साल का बेटा भी है।

इशरत जहां: चीन तलाक को संवैधानिकता को चुनौती देने वालों में पश्चिम बंगाल के हावड़ा की इशरत जहां भी शामिल थीं। इशरत ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पति ने दुबई से ही उन्हें फोन पर तलाक दे दिया। इशरत ने कोर्ट को बताया था कि उसका निकाह 2001 में हुआ था और उसके बच्चे भी हैं जिन्हें पति ने जबरन अपने पास रख लिया है। याचिका में बच्चों को वापस दिलाने और उसे पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है।



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