मड़ियादो, सुधीर मिश्रा। हर एक पिता का सपना होता है कि उसका बेटा पढ़, लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और खूब नाम कमाए। भले ही पिता को इसके लिए दिन-रात एक क्यों न करना पड़े। ऐसे ही मजदूर पिता ने अपनी मेहनत की पाई-पाई जोड़ कर अपने बेटे को उसके मुकाम तक पहुंचाया और उसे पढ़ा लिखाकर सरकारी शिक्षक बनाया।

इस स्थिति में मजदूरी करने वाले रामसेवक आदिवासी ने अपने बेटे लालसिंग को पढ़ाया लिखाया और आगे की पढ़ाई के लिए हटा भेजा। जहां उनके बेटे ने संस्कृत विषय से एमए व डीएड कर वर्ष 2008-09 में व्यापमं के द्वारा कराई संविदा शिक्षक भर्ती परीक्षा में भाग लिया और लालसिंग का सिलेक्शन छतरपुर जिले में हो गया। इसके बाद वह शिक्षक बनकर जेतपुर शिक्षा केंद्र अंतर्गत आने वाले प्राथमिक स्कूल पाटन में पदस्थ है।
कभी गिरवी तो कभी उधार रखा सामान-
अशिक्षित पिता ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं रखी। मजदूर पिता को कभी दूसरों से उधार लेकर तो कभी घर का सामान गिरवी रखकर बेटे की फीस और किताबें खरीदनी पड़ी। अब पिता अपने छोटे बेटे लक्ष्मण आदिवासी को भी पढ़ा रहा है जिससे वह भी अपना मुकाम हासिल कर सके।
इन्हीं परिवारों से एक अन्य युवक औपचारिकेत्तर शिक्षा गुरूजी के माध्यम से शिक्षक है। पेशे से मजदूर यह वर्ग अब भी शिक्षा से दूर है, लेकिन लालसिंग के शिक्षक बनने के बाद अन्य परिवार भी अपने बच्चों को शिक्षित करने में जुट गए हैं।
पिता रामसेवक का कहना है कि उनकी जिंदगी तो मजदूरी करते-करते गुजर गई। उन्हें समझ में आ गया था कि अशिक्षा अभिशाप है इसलिए अपने बच्चों को पढ़ाया। बेटे लालसिंग का कहना है कि पिता ने अपना पसीना बहाकर मुझे काबिल बनाया है मैं अपने भाइयों को पढ़ाकर उन्हें भी काबिल बनाना चाहता हूं।
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